पिता
पिता
वह गर्म हवा का झोंका है, जब आता है झुलसाता है
लेकिन बारिश की बूंदों से, वह भी ठंडा पड़ जाता है
कोई बारिश की बूंदे कह ले, कोई आंखों का वह नीर कहे
इन बातों को समझे वो ही, जो ऐसे मन की पीर सहे
वह गर्म हवा का झोंका है, जब आता है झुलसाता है
ऐसे ही अनायास हमको ममता का मूल्य दिखाता है
यूं अंगारों पे चलता, वो भी शितलता चाहता है
तब नन्हा सा दीपक आकर, उसकी प्यास बुझाता है
वह गर्म हवा का झोंका है, जब आता है झुलसाता है
लेकिन बारिश की बूंदों से, वह भी ठंडा पड़ जाता है