पिता
पिता
पिता एक मौन रूपी सम्बल
जो अपनी मुस्कुराहट को छिपाकर
दर्द को अपना हथियार चुनता है
खुद से कभी नही कहता
मुझे यह अपने लिए करना है
पर अपने परिवार की
सारी जिम्मेदारी दूनता है
जो सपने उसके रह गये अधूरे
उन्हें अपने बच्चों में बुनता है
हमेशा तेवर ऊंचे रखता है
कन्धे पर बिठाता है
घोड़ा बन घुमाता है
पर परिस्थितियों के आगे नही झुकता है
मन पतंग सा है उसका वाचाल
फिर भी बुद्ध सा शांत बन
वो भीतर ही भीतर कुढ़ता है
उसका मौन जिस दिन टूटता है
या तो वो पिता नही रहता
या फिर उसका भरम टूटता है
बच्चों को क्या मालूम पिता होना
उन्होंने तो सिर्फ माँ का दुलार जाना है
पिता की सख़्ती के पीछे
दुनियादारी का संस्कार निराला है
वो एक समर्पित कलाकार है
अपने कर्मक्षेत्र का
बस बच्चों का अभिमान
उनकी वो नन्ही मासूम मुस्कान
बच्चे ही तो होते हैं
असल मे माता पिता की पहचान।