पिता
पिता
होते हैं पिता ही ऐसे घने कोहरे में किरण के जैसे
कभी नहीं पड़ती छाया दुख की, रोम रोम है हर्षित रहता
न चिंता ना दुख परेशानी कभी हमारे ज़हन में आता
पिता हों मानो छत अपने घर की गर्मी बारिश से बचाता
थे पिता जो मेरे नित्यानंद, सभी को देते सुख आनंद
ज्ञान सलाह सेवा कर्मठता सब कुछ उनसे हमने सीखा
कभी न विचलित होते देखा चाहे पड़े हों विघ्न अपार
सदा करें हम धैर्य को धारण रखें ईश्वर पर विश्वास
सद्गुणों के आगे कभी बस न चलता दुष्टों का
थे वह सबके संगी साथी और सरल पथ प्रदर्शक
कहती हैं बातें कितनी यादों की जो पुरवाई चले
सबसे मिलकर रहें जीवन में हरसूं एक से दो भले
चले गए जो राह दिखाकर उस पर ही चलते जाना
जग में क्या रखा है मानव क्षणभंगुर ये ताना बाना