फर्क़ पड़ता है!
फर्क़ पड़ता है!
फर्क़ पड़ता है आज भी
तेरे जाने के बाद भी,
करता हूँ तुझसे ही मुहब्बत
आज भी तेरे जाने के बाद भी।
दिल में गम है तेरे जाने का पर आँख नम नहीं,
अरे! बर्षों से रोए नहीं हम
सोचते हैं क्या सचमुच
पत्थर के हो गए हम।
पर ये अंत नहीं मेरी मुहब्बत का
ये एक नयी शुरुआत है,
बहुत लोग पूछते हैं
क्यों करते हो शायरी?
अब उन्हें क्या बताऊँ
कि तुझे याद करने का यही एक तरीका है।

