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Shelleyandra Kapil

Abstract

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Shelleyandra Kapil

Abstract

पहली बार

पहली बार

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पहली बार भी होती है,

कभी बहुत मुक्तसर होती है,

कभी उत्साह जनक होती है,

कभी कभी आश्चर्यजनक होती है,


कभी भावों से सराबोर होती है,

कभी संवेदना पर चोट होती है,

कभी सरिता की कल कल होती है,

कभी किनारों को स्पर्श भी करती है,


कभी मुस्कान बखान करती है,

कभी कभी इत्मिनान भी करती है,

लेकिन शरमाती नहीं, छुपाती नही,

मजबूर होकर,नहीं, मज़बूत होकर

सामना करती है,


कभी कभार, प्रत्यक्ष नहीं होती है,

कभी परोक्ष रूप लक्षित होती है,

कभी प्रतिबिंब रुप प्रदर्शित होती है,

कभी सहज शब्दों में समर्पित होती है



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