फ़क़ीर
फ़क़ीर
अपनी ख़ुद ही लिखता
तक़दीर हूँ मैं
कोई कहे पागल
कोई कहे नासमझ
कोई कहे हुनरमंद
कोई कहे फ़क़ीर हूँ मैं।
अगर हारा तो ख़ुद की ग़लती से
अगर जीता तो ख़ुद के दम से
हाँ मेरे चाहने वालों का साथ हैं
एक वो जो मुझे पलकों पर बैठाती हैं
एक वो जिसका वीर हूँ मैं।
कोई कहे पागल
कोई कहे नासमझ
कोई कहे हुनरमंद
कोई कहे फ़क़ीर हूँ मैंय़
कहे मुझ से सब
तूँ क्यूँ नहीं भगवान को मानता
क्यों नहीं मंदिर जाता
तुझे इतना समझाया
तूँ क्यों नहीं समझ पाता।
अब कोई बतायें मुझे
कहाँ हैं मंदिर जाने की ज़रूरत
जब हैं दिल में रब की मूरत
क्या कहे उनसे
जो ख़ुद को भगवान माने
ख़ुद की ग
़लतियाँ छिपायें
दूसरों की लगे ग़लतियाँ गिनाने।
बस मानता हूँ मैं की
एक इंसानी शरीर हूँ मैं
कोई कहे पागल
कोई कहे नासमझ
कोई कहे हुनरमंद
कोई कहे फ़क़ीर हूँ मैं।
कहते वो मुझसे
की उड़ने वाले गिरा करते हैं
एक वो जो कहे मुझसे
की गिरने वाले ही उड़ा करते हैं
अब कौन हैं मेरे अपने
जो ख़ातिर मेरे दुआ करते हैं।
कहना हैं उनसे
गिर भी गया तो क्या
उड़ तो लिया
कुछ ना करने से बेहतर
कुछ तो किया।
मानता हूँ की प्यादा हूँ मैं
पर सात क़दम चल
बनना जानता वज़ीर हूँ मैं।
कोई कहे पागल
कोई कहे नासमझ
कोई कहे हुनरमंद
कोई कहे फ़क़ीर हूँ मैं।