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Savi Sharma

Inspirational

4  

Savi Sharma

Inspirational

पहाड़ की श्रमिकायें

पहाड़ की श्रमिकायें

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सिर पर बोझ उठाए चढ़ती है 

ऊँची नीची पगडंडियों पर

रास्ते में आती दुरूह बिच्छू घाँस को हटाती 

बढ़ती है नित्य किसी तप्सविनी सी 

जिसके एक हाथ में बच्चा 

पीठ पर भारी टोकरी 

जिसमें हँसिया ,कुदाल 

जिनसे काट सके बीहड़ 

कंटक से भरपूर रास्तों 

के विघ्न 

बढ़ती है आगे 

राह देती कर्म योगी सी 

कमर पर बांधे रंगीन कपड़ा 

जो उठाता है बोझ 

उसकी सामर्थ्य से भी ज़्यादा 

सूरज में तपा स्वर्ण सा चेहरा 

दो प्रेम पुष्पित आँखें

जीवन जिनमें हँस हँस 

हिलोरे लेता जीवंतता का प्रमाण 

देता है 

उनके शरीर पर सजे घागरा चोली 

और सिर पर बूटी से सजी ओढ़नी 

मुझे ज़्यादा अच्छी लगती है 

उन तपस्वियों से 

जो एकांत में ध्यान लगा रहे होते है 

ये कर्म क्षेत्र में अग्रसर 

इन योगियों से कही आगे हैं

खेत में इनके चलते हाथ 

जैसे विधाता के हाथ 

समय से पूर्व आई चेहरे पर 

लकीरें इनके श्रम का सबूत है 

और जब स्वेत बर्फ़ 

ढकने लगती है पहाड़ियों को 

ठिठुरन में पारा माइनस में पहुँच 

खून ज़माने लगता है 

तब भी नही रुकता कर्म इनका 

गाय भैस पशुओं के चारे के लिए 

उतनी ही तन्मयता से 

रहती है कर्मशील 

मै नतमस्तक हूँ उनके जीवन की 

संघर्ष शीलता के लिए 

शादियों में गाया जाने वाला गीत 

बारामासा की मीठी धुन 

आह्लादित कर मजबूर करती है 

झूमने के लिए 

गर्मियों में बुरांस लकदक 

अपने लाल रंग में दहकता है 

ये उनसे शर्बत बनाने के लिए 

करती है जी तोड़ मेहनत

पहाड़ की खूबसूरत स्त्रियाँ 

उन्हें इनका श्रम और भी

 खूबसूरत वंदनीय बनाता है 

भोले भाले चेहरे से हँसती 

मान सम्मान की हक़दार हैं।



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