पगली
पगली
मासूमियत से लबरेज
लंबे-घने काले जुल्फों को लहराते
सलवार सूट में जब वो आती है
मानो जहां ठहर-सा जाता है...
वो जिसे मैं दिलों-जान से चाहता हूँ
जिसे मैं बेइंतहा मोहब्बत करता हूँ
वैसे तो उसके कई नाम रखे हैं मैंने
मगर प्यार से मैं उसे पगली कहता हूँ...
एक दिन अचानक वो मिलने आती है
मेरे सीने से लिपट कर रो देती है
पगली कहती है
बंधन और तमाम अड़चनें हैं
हमारे मिलन के दरमियां
मोहब्बत की राह में
काँटो का है दरिया...
पगली कहती है
अफ़सोस जताती है
आख़िर क्यों हमने इश्क़ किया ?
हमने सच्चा प्यार जो है किया
हमारा कुछ नहीं हो सकता
हमारा नसीब नहीं मिल सकता...
पगली कहती है
हो सके तो मुझे भूल जाना
किसी और से शादी कर लेना
जिसमें माँ-बाप की राजी हो
जो जात/बिरादरी का हो
जिसमें समाज की हामी हो...
पगली कहती है
मेरा क्या है ???
मेरी फ़िक्र मत करना
आगे तुम हमेशा बढ़ना
मैं रह लूँगी तुम्हारे बगैर
अब से हम हो जायेंगे ग़ैर
अब से भूली-बिसरी यादें होंगी
न जाने तुम बिन जिंदगी कैसे कटेगी ?
तुम बस ख़ुश रहना
माँ-बाप का ख़्याल रखना
वो मुझसे विदा लेती है...