पैगाम
पैगाम
पता नहीं ए कोनसी घड़ी है
जो हर किसीकी कर्म से जुडी है
मृत्यु परम सत्य है, परन्तु
इस मृत्यु को सत्य मानके आगे बढ़ जाना
चुप से सह जाना आसूँ ना बहाना ए
सच्चाई भी मृत्यु से कम दुख दर्द नहींं देती है।
चार कन्धा ना है ना है कोई चिता
बस आग की तपति ज्वाला में जल रही
पूरी की की पूरी परिवार एक साथ
इस मृत्यु का हमसफर बनती है.
पता नहींं ये कोनसी घड़ी है.
हावा का झोका भी अभी जहर सा लगता है
अपने यंहा अपनों के करीब जानेसे घबराते है
भूखे पेट यहाँ गिरा कोई फुटपाथ पे तो
कोई लाश की ढेर मे अपना वक़्त गुजरता है.
जीते है यहाँ एक एक पल इस डर के साथ
पता नहींं कोनसा पल आखिर हो,
फिर भी कुछ इन्शान अबभी नहींं समझते हैं कम
बीमारी तो एक जरिया है ये खुद का पाप कर्मा है
जो मृत्यु का पैगाम बनकर आया है वो खुदा का एक पैगाम हो।