पाठशाला
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चढ्ढीयन में आये हैं
बुशर्ट, नही पहन पाये हैं
गलवन पर दाल - भात अभी तक लगायें हैं
अंखियन के कजरन में कीचर छिपाये हैं
कुछ खाये है, कुछ अध खाये है, कुछ भूखे ही चले आये हैं
इनकी यह दशा देख पण्डित जी मुसकाये हैं
मास्टर साहब की अंखियन में दो बूंद चमक आये हैं
आइसे विद्यार्थियन कि दशा देख बोले " अनन्त "
देखों, देखो, देखो ये भी पढ़न को आये है।
कुछ हकलाये है तो कुछ तोतलाये हैं
कुछ तो असुअन को जर जर बहाये हैं
तख्ती में करिखा को मल - मल लगाये हैं
दुद्धी के बोरका से घिस - घिस चमकाये हैं
कपियन में देखो नवा कागज़ लगाये हैं
बस्ता को देखो धोय - धोय चमकाये हैं
देख के विद्यार्थियन की यह दशा, बोले " अनन्त "
बचपन की अपन दशा फिर लौट आये हैं ।