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Nishchala Sharma

Inspirational

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Nishchala Sharma

Inspirational

निश्चल निश्चय

निश्चल निश्चय

1 min
330


पार तो जाना ही है,अब किनारा पाना ही है।

क्या हूं मैं ये खुद को समझाना भी है।

सबको गुरु जान खुद को लघुता का द्योतक मानकर,

रुक गई थी मैं पड़ाव को मंज़िल जानकर

ज़रा बांधी मैंने थी नौका, फिर से उसको लहरों में उतराना है।

थाह लेके देखा जाए ज़रा समंदर की, गहराई में उसकी कितना सच कितना फसाना है।।

क्या नौका ही होती है पार लहरों से या कि नाविक का भी कुछ इसमें कुछ कर जाना है।

अब अटल है निश्चय मेरा ये, मन को ना अब डिगाना है।

कोई साथ हो तो अच्छा, न हो तो बेहतर, एकला चलने का सबक पुराना है।

इस निश्चय पर होकर निश्चल किसी भी बाधा से न घबराना है।

हार जीत रण के ही परिणाम हैं, किसी एक को तो अब अपनाना है।

बस निश्चल रहकर अपने निश्चय को मूर्तरूप कर जाना है।।


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