नारी माटी रूप
नारी माटी रूप
माटी सी है काया मेरी, है माटी मे जाना
जन्म लिया जिसने भी नारी रूप में,
क्यूँ अनमोल किसी ने भी नहीं माना
माटी सी है काया मेरी है माटी में जाना।
माँ भी है, बेटी भी, तू ही तो पत्नी भी है
जग में फिर भी सबको तुझसे बड़ी आपत्ति है,
हूँ माटी मैं जैसे किसी कुम्हार की हाथ की
जिसने जैसा गढ़ना चाहा हुई मैं उसी आकार की।
माटी सी है काया मेरी, है माटी मे जाना
जो दिया तूने इस जग को सब ने भली भॉँति है जाना,
पर तेरी मन की बात को आज तक किसी ने भी नहीं जाना
माटी सी है काया मेरी, है माटी मे जाना।
क्यूँ समझना चाहे नहीं कोई मेरा ये फसाना,
क्या हुई खता मुझसे--------माटी---
अब तू ही मुझे बताना ?
माटी सी है काया मेरी, है माटी मे जाना।।