नारी -एक शक्ति
नारी -एक शक्ति
मैं अबला नहीं हूं, मैं नारी हूं।
मैं कली नहीं, फुलवारी हूं।
मैं ही रामायण गीता हूं।
मैं ही द्रौपदी व सीता हूं।।
पर सतयुग हो या कलयुग हो,
इंसा ने ना सम्मान दिया।
भरी सभा दुर्योधन ने,
कैसा वह अपमान किया।
आज भी रात अकेले में
डरती हूं और सहमती हूं।
साया जो कोई पीछे हो,
जल बिन मछली सी तड़पती हूं।
डर जाती हूं एक आहट से,
मन में पहली घबराहट से,
मैं भूल ही नहीं उस रात को,
तड़पी थी जब छटपटाहट से
वे बहुत थे मैं अकेली थी,
ना कोई संग सहेली थी
कैसे उनको यह पता लगा
यह मेरे लिए पहेली थी।
सब ने मुझ को पकड़ लिया,
और जार जार कर डाला,
मेरी लाज के आंचल को,
तार तार सा कर डाला।
गलत हुआ जो साथ मेरे,
सब मुझको ही चुप करते हैं।
वो लड़के हैं तुम लड़की हो,
बस यही उदाहरण देते हैं।
मुझसे ही बातें करते हैं ,
मुझे पर ही प्रश्न है यह जड़ते हैं।
मर्यादा को छलनी करने वाले,
मुझ पर ही ताने कसते हैं।
क्यों निकली अकेली रात में
क्यों नहीं लिया कोई साथ में,
क्या मेकअप था क्या गहने थे,
क्या छोटे कपड़े पहने थे?
इन प्रश्नों को करने वालों,
क्या शर्म नहीं तुम्हें आती है।
बहन भी है बेटी भी है
फिर लाज कहां खो जाती है।
नारी की इज्जत छलनी हो,
इससे बड़ा कोई दर्द नहीं।
जो ऐसा दुष्कर्म करें,
वह नामर्द है मर्द नहीं।
ऐसे दोषी लड़कों पर,
सजा मौत की भी कम है।
नारी के प्रति हीन भावना,
आज यही हमको गम है।
हमको यह समझना होगा,
खुद ही आगे आना होगा।
चिंगारी से ज्वाला बनकर,
खुद को आज बचाना होगा।
नारी का सम्मान करो ,
नारी का सम्मान करो
यह भीख नहीं हम मांगेंगे।
खुद ही आगे आएंगे।
खुद को हम पहचानेंगे।।