मज़हब के नाम
मज़हब के नाम


मज़हब के नाम पे तूने सब बदल दिया।
इंसानियत को भूल,
तू हैवान बन गया।
तेरे लिए वो भगवान है,
मेरे लिए वही खुद,
नाम का फर्क है भाई,
तूने तो उसका ईमान बदल दिया।
लड़ता रहा तू उसे,
लगाना था जिन्हें सिनेसे।
एक मुल्क में रहते भाई थे
पर तूने रिवायत के नाम, ज़हर घोल दिया।
मोहोबत से हाथ पकड़के,
चलना था साथ हर कदम पे।
तूने नफरत से तलवारे उठाली,
उस दिन तेरे अन्दर का इंसान मारा गया।
वो मंदिर तेरा हुआ,
यह मस्जिद मेरा बोला गया।
गली मोहल्ले को छोड़,
तूने तो खुदा को ही बाँट दिया।