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Rekha Bora

Romance

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Rekha Bora

Romance

मुकद्दर

मुकद्दर

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एक.. 

अजीब सा तूफां,

उठ रहा है सीने में ।

आज फिर उसे,

शब्दों में बांध लूंगी  

ख़ामोशी से ।

नहीं खत्म होगा 

ये सिलसिला। 

आज फिर 

करना होगा इरादा,

तुम्हें पाने का।

मगर..

तुम कब मिलोगे,

कैसे मिलोगे,

कुछ भी तो नहीं जानती ।

मगर तुम्हें..

मुकद्दर की लकीरों से, 

हासिल करके रहूँगी,

ये खुद से वादा है मेरा।

ताउम्र तलाश करूँगी तुम्हें।

फूलों की खुशबू में,

आकाश के रंगों में,

रात के ख़ामोश लम्हों में ।

तुम कभी तो मिलोगे,

कहीं तो मिलोगे,

ये यकीं है मुझे।

       

       


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