मृत्यु भोज
मृत्यु भोज
पिता की अर्थी उठ चुकी थी, बेटे का कलेजा हो रहा भारी था।
माथे हाथ धर बैठी अम्मा सोच रही थी
अकेले कैसे कटेगी जीवन? चिंतित हो रही थी।
कर्करोग से पिता गुजरे थे सिर पर कर्ज अभी भारी था।
तभी पधारे कुछ भद्र जन, गिनाने मृत्यु भोज की सूची और लाभ
जिसे सुन घबराया बेटा जोड़ लिया अपने दोनों हाथ।
माफ करो हे भद्र जनों! पिता के इलाज का कर्ज सिर पर भारी है।
एक बीमार मां घर में है, दो बेटियों के भी हाथ पीले करने बाकी हैं।
असमर्थ हूं मृत्यु भोज करने में, कृपया समझें मेरी लाचारी को।
भड़क उठे सभी भद्र जनों! तू बेटा नालायक और मूरख है।
अपने पिता की मृत्यु भोज से कतराता है क्यों अपने सिर पाप की पोटली बढ़ाता है।
सुन ले खोल कर दोनों कान! गर मृत्यु भोज से मुकरोगे
हुक्का पानी बंद करेंगे, समाज से तुम्हें बर्खास्त करेंगे।
सुनकर हक्का-बक्का रह गया वो आंखों से नीर बहने लगे।
यह देख उठ खड़ी हुई दोनों बिटिया हाथ जोड़ करने लगी विनती
हे भद्र जनों! कृपया समझें मेरे पिता की असमर्थता बख्श दीजिए
उन्हें मृत्यु भोज से। थोड़ा तरस खाईए उनकी लाचारी पर।
परंतु एक ना सुनी उन्होंने अटल रहे अपने निर्णय पर।
बिटिया ने भी अपना कलेजा मजबूत किया अपनी बात
कुछ यूं कहा, गर नहीं मानेंगे तो मुझे आप की सजा स्वीकार है।
आप क्या बर्खास्त करेंगे?हम स्वयं बर्खास्त होते हैं।
जो समाज ना समझे एक इंसान के मजबूरी को,
ऐसे समाज में रहना हमारे लिए धिक्कार है।।
