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Rohit Tiwari

Abstract

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Rohit Tiwari

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मोबाइल चक्र

मोबाइल चक्र

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ये कैसा युग आया, हाथों में फ़ोन समाया,
ज्ञान का सागर, पर दुरुपयोग छाया।
बच्चे बूढ़े, सब इसकी माया में,
खोये रहते हैं, हर पल छाया में।
एक तरफ ये ज्ञान का भंडार,
तो दूसरी तरफ, समय का संहार।
 बातें कम, स्क्रीन पर नज़रें,
रिश्तों की डोर, होती कमज़ोर।
 स्वास्थ्य बिगड़े, नींद उचटे,
आँखें लाल, मन भी रूठे।
 शारीरिक क्रिया, हुई कम,
 मानसिक तनाव, बन गया हमदम।
 बदलता जीवन, बदलता समाज,
मोबाइल की लत, बना रही ख़राब।
सकारात्मक सोच, अब है दूर,
नकारात्मकता, का है भरपूर।
 आवश्यकता है, समझदारी की,
सही उपयोग की, समझदारी की।
मोबाइल बने, ज्ञान का साधन, न कि,
 समय का नाशक, जीवन का पतन।
 जिन हाथों में होना चाहिए कलम,
 उन हाथों में है मोबाइल।
 संकट में है भविष्य काल,
 कहीं यह मोबाइल बन न जाए काल।


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