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Dr. Akansha Rupa chachra

Inspirational

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Dr. Akansha Rupa chachra

Inspirational

मनसा

मनसा

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भावों के निर्माल्य बीन कर,

ढूँढ़ रहे उर की झाँकी।

धूमिल पृष्ठों से झाँक रहे थे,

संवेदन अतिशय बाकी।

धुसर-माटी सने हुए से,

यक्ष-प्रश्न शत खडे़ हुए।

उत्तर के हतप्रभ से अक्षर,

धुँधलाए भी अडे़ हुए।

शैशव के अल्हड़ गुँञ्चों ने,

दिवा-स्वप्न थे खूब बुने।

काल-चक्र के वृत्त-व्यास ने,

अयाचित ही सूक्त चुने।

सत् प्रारब्ध-प्रबलता के घट,

स्वतः-सिद्ध स्वीकार किये।

प्राणो को आश्वासन देकर,

यत्-किंचित आभार दिये।

क्षत-विक्षत हो घूम रहे कित,

रजत-कांति को याद नहीं।

वर्तित-प्रासो के पाश जो मिलते,

परावर्त हो यहीं-कही।


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