मन की खिड़की
मन की खिड़की
घर का दरवाजा
बंद है
मन की खिड़की तो
खोल लो
तन्हा हो तो क्या हुआ
चांद बन जाओ और
आसमान के सितारों से खेल लो
हर कमरे की दीवार में
शीशे जड़वा लो और
अपनी ही असंख्य छवियों के साथ
प्रीत के झूले में
राधा कृष्ण से झूल जाओ
एक ताजी हवा का झोंका
तन के द्वार न आ सके तो
न आये
एक सुगन्धित सांस का अप्रतिम राग
हृदय से
गा सको तो गा लो
यह संसार एक मायाजाल है
भटकते रहो जीवन भर
मिलता यहां कुछ भी नहीं
खुद की शरण में आकर
खुद की समाधि में ही लीन हो जाओ
मिलते यहां प्रभु
मिलता यहां हर एक सुख।