महिला सशक्तिकरण एक दिखावा !
महिला सशक्तिकरण एक दिखावा !
माँ-बहन, पत्नी और बेटी, महिला के अनेक किरदार।
हर भूमिका को खूब निभाती, ज़बरदस्त है ये कलाकार॥
ईश्वर का है रूप इसमें, सागर सी स्थिरता।
झरनों सा है चंचलपन, कोयल सी मधुरता॥
जीवन का श्रोत है नारी, जीवन से ओत-प्रोत है नारी।
प्रकृति सा है इसका चरित्र, सच्ची सबकी दोस्त है नारी॥
लता सी लचीली है, छुई-मुई सी शर्मीली है।
अबला मत समझना इसको, समय पर ये गोली है॥
आज़ादी के बहाने गुलाम बनाया।
हर विज्ञापन में इसे दिखाया॥
घर बाहर दोनों इससे लेते हैं वे काम।
पुरुषों की दोहरी नीति को, नारी नहीं सकी पहचान।
छद्म आज़ादी छद्म स्वामित्व, सूख गया मातृत्व॥
संवेदना शून्य पश्चिमवाले, नारी का दोहन करते हैं ।
हर पल यौवन को हरते हैं, हर पल यौवन को हरते हैं॥
बड़ी-बड़ी इनकी बातें, दर्शन इनका भरी है ।
आसानी से धोखा खाये, कहते इसको नारी हैं॥
पूरब में होती है जहां, हर नारी की पूजा।
ईश्वर का रूप दिया नारी को, इस सा कल्याणी और न दूजा॥
अन्नपूर्णा, लक्ष्मी, सरस्वती, काली, दुर्गा, गंगा।
सबको भाए इसकी माया, सबको रखे ये चंगा॥
इसके चरणों में स्वर्ग मिलता, इसकी सेवा से धन मिलता॥
इसके सम्मान से सफलता मिलती, इसके अपमान से मिलती नहीं मुक्ति।
वीरों की जननी है नारी, महापुरुषों की माता है।
सभ्यता ने जहां जन्म लिया, माँ की गोद कहलता है॥