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Sneha Meena

Abstract

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Sneha Meena

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"मेरी माँ"

"मेरी माँ"

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जहां ममता की कोई सीमा नहीं ,वो ममत्व हैं ‌मेरी मां

जहाँ बेटा-बेटी में भेद नहीं,वो न्याय है मेरी माँ l

जिसके बिना घर सुना लगे,वो फुसफुसाहट है मेरी माँ

जिसके बिना मंदिर अधूरा लगे,वो मूरत है मेरी माँ।


अनपढ होकर भी,जो अच्छी शिक्षा देती हैं

शिक्षिका ना होकर भी,जो ट्यूटर की भूमिका निभाती हैं।

गलती करने पर थोड़ा सा डांट देती है मेरी माँ

फिर सोने पर,सर को मेरे सहलाती ‌है मेरी माँ।


खुद पर पैसा खर्च करने से पहले बहुत सोचती है वह

लेकिन अपने बच्चों की हर इच्छा पूरी करती है वह l

जब बच्चे पढ़ने केे लिए शहर गये तो छुप-छुपकर रोती

‌ रोती थी मेरी माँ

आज बच्चे सही राह पर है तो देख कर खुश होती है मेरी माँ ll


खांसी बुखार जोरो से हो,तब भी दर्द हमसे छिपाती ‌है

खुद बीमार होकर भी हमारी तबियत पहले पूछती है l

थक-हारकर कभी-कभी ,ज़मीन पर बैठ जाती है मेरी माँ

लेकिन अपने बच्चों को देखते ही दौड़ी चली आती है मेरी माँ।


मैं सोचती थी कि,माँ भी हमसे ज्यादा ही मोह रखती है

पर शायद हर माँ की ममता ऐसी ही होती है l

गूंगे-बहरे अपने हर बच्चे पर वह प्राण न्यौछावर करती है

बदले में अपने बच्चों से थोड़ा सा सम्मान ही चाहती है ll


बच्चे चिल्लाकर बात कर दे तो चुप हो जाती है वह

और हंसकर बात कर ले तो खुश हो जाती है वह l

जितनी भी कोशिश करूं तुझे समझ नही पाती हूँ मैं माँ

रब से कुछ ज्यादा नहीं तेरे लिए हर ख़ुशी चाहती हूँ मैं माँ।


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