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Chhaya Prasad

Inspirational

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Chhaya Prasad

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मेरे हिस्से की धूप

मेरे हिस्से की धूप

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मेरे हिस्से की धूप

खिड़की के कोने से,

अंदर आती धूप।

मेरे हिस्से की।

सहला जाती है,

मेरे शीतल काया को,

फूर्ति प्रदान करती धूप,

मेरे हिस्से की।


खेलती, खिलखिलाती,

कोने दर कोने,

अटखेलियाँ करती धूप,

मेरे हिस्से की।

उष्मा, प्रकाश लिए

वितरण को दौड़ती,

बड़े मकानों, दूकानों,

को बेधती, भागती धूप।

मेरे हिस्से की।


धुन्ध से मंडराते, 

प्रदूषण से छुपती-छुपाती

मिलने को बैचैन धूप।

मेरे हिस्से की।

नदी ,जलाशय,पेड़-पौधे,

सभी तरस रहे पाने को धूप,

अपने हिस्से की।

धूप जागीर नहीं,

किसी की, आने दो

मुक्त, स्वछंद धूप

सबों के हिस्से की।



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