Chhaya Prasad

Others

1.6  

Chhaya Prasad

Others

बंदिशें

बंदिशें

1 min
378


कई पहरे लगा दो,

मेरी आवाज़ पर तुम।

ना बोलेंगे भले ही,

प्यार से चाहे, डर कर,

या अपने ही हठ से।

पर रोक ना पाओगे, 

उस आवाज़ को 

जो दबी सी रह गई,

अंतरात्मा में।


कब तक दबेगी,

मूक आवाज़ बनकर।

फूटेगी एक दिन,

ज्वालामुखी सी।

ना डर होगा, ना भय होगा।

जलेगी रस्में सभी,

कसमें सभी,

टूट जाऐगी बंदिशें,

तब राख बनकर।

         



Rate this content
Log in