मेरा मन एक परिंदा
मेरा मन एक परिंदा
मेरा मन एक परिंदा है
मेरा मन एक परिंदा है,
ये जीता है, क्योंकि ये जिंदा है।
ये किसी बंदिश को नहीं मानता,
स्वतंत्र है गुलामी को नहीं जानता
ये आसमान में उड़ना चाहता है,
परिंदो के साथ गाना चाहता है।
स्वयं को पहचानना चाहता है,
सपनों का जहाँ बनाना चाहता है।
ये हर दिशा में घूमता है,
सरहद को नहीं मानता।
इस पर कितने पहरे लगा दूँ,
सब तोड़ देता है।
हर खिड़की- दरवाजे को खोल देता है,
आसमान से अगाध प्रेम करता है।
पिंजरे को नहीं जानता,
इतना मस्त-मौला कि दुनिया की,
हर रीत ठुकराता है,
इसे किसी औऱ की जरूरत नहीं,
स्वयं में रमता जाता है।
ये स्वतंत्रता का महत्व समझता है,
मुझसे बस स्वतंत्रता माँगता है।
