मैंने चाहा बहुत था
मैंने चाहा बहुत था
माँ के आँचल में मुझे भी जगह मिले,
ये मैंने चाहा बहुत था।
माँ के गोद में सर रखकर सो सकूँ
ये चाहा बहुत था।
वो उसका पास बैठना,
अपने हाथों से खाना खिलाना,
मेरी बातें सुनना और कुछ अपनी बातें सुनाना।
ये पल मैं भी जी सकूँ ऐसा चाहा तो बहुत था।
वो उसका बात - बात पर चिंता करना,
मेरे ना खाने पर डाँट कर खिलाना,
मैं रातों को सो ना पाऊँ, तो अपनी गोद में
सुलाना।
ये साथ मैं भी पा सकूँ, ये मैनें चाहा बहुत था।
उसका मेरी चोट देखकर रो जाना ,
मेरी चोट पर हल्के से मर-हम लगाना,
दिल टूटे मेरा और दर्द उसका भी
महसूस कर जाना।
ये प्यार मैं भी पा सकूँ, ये चाहा बहुत था।
एक बार तुझे माँ बोलकर पुकार सकूँ,
ये चाहा बहुत था।
पर इस शब्द का हक तो मेरे पास ही नहीं था।
