मैं नया गीत गाऊंगी
मैं नया गीत गाऊंगी


मनुष्य जब
दुर्गम यात्रा सुगम बनाने का प्रयास करने लगेगा
औरौं से अलग बनने का साहस करने लगेगा
तब-तब यह कविता उसे सुनाने आऊंगी
मैं नया गीत गाऊंगी ।
घृणा के स्थान पर जब प्रेममार्ग बनाएगा
अपने हृदय से ईर्ष्या को हटाएगा
तब मैं उसके पथ पर पुष्प लिए प्रस्तुत हो जाऊंगी
मैं नया गीत गाऊंगी ।
जीवन के जंग में जब मनुष्य थक जाएगा
हौंसला उसका ऊंचा उठने का थम जाएगा
तब-तब यह कविता उसे सुनाने आऊंगी
मैं नया गीत गाऊंगी ।
क्या पता यह कविता पसंद आएगी ?
क्या यह कोई छाप छोड़ जाएगी ?
फिर भी सुर, लय, ताल में सबको यह सुनाऊंगी
मैं नया गीत गाऊंगी ।