मैं जो आवारा पंखी होती
मैं जो आवारा पंखी होती
पंछी बनूँ उड़ती फिरूँ मस्त गगन में।
आज मैं आजाद हूं दुनिया की नजर में।
मैं सबसे पहले अपने भाई को राखी बांधने जाऊं मैं।
फिर मैं अपने सब दोस्तों से मिलूं मैं।
फिर सब देश विदेश घूम के बच्चों से मिलूंगी।
सब नाती पोतों को प्यार करूंगी
सब बच्चों कि गृहस्थी देख कर खुश होंगी।
सबसे बहुत अच्छी तरह से मिलजुल कर के
वापस अपने घर को पहुंच जाऊंगी।
क्योंकि अपना घर है सबसे न्यारा।
एक चिड़िया के बच्चे चार।
घर से निकले पंख पसार।
घुम फिर वापस आए, बोले
देख लिया हमने जग सारा,
सबसे प्यारा घर हमारा
ऊंचे ऊंचे गगन में उड़ती फिरूँ
जहां मन आए वहा जाऊं।
और जब मन भर जाए तो वापस
अपने घर को आ जाऊं ।
कितनी प्यारी कल्पना है
सपने देखने में और सपनों की उड़ान
भरने का मजा ही कुछ और है।
हींग लगे ना फिटकरी
रंग भी चोखा आए।
