मैं हूँ दिव्य
मैं हूँ दिव्य
मैं ही हरि की सौम्या दृष्टि
और मैं ही शिव की शक्ति हूँ
मुझसे ही चलती है सृष्टि
मैं ही जगत जननी हूँ।
जलती प्रतिपल फिर भी चलती
मैं हूँ दिव्य मैं नारी हूँ।
प्रेम में विष पीने वाली मीरा मैं हूँ
प्रेम निभाने वाली राधा भी हूँ
कभी हरि की प्रिया चरण दासी हूँ मैं
कभी प्रतापी शिव की अर्धांगिनी हूँ मैं
प्रेम समर्पण करती रहती
मैं हूँ दिव्य मैं नारी हूँ।
मनाेहारी लक्ष्मी हूँ दुष्ट
नाशिनी दुर्गा भी हूँ,
कभी सौम्या हूँ कभी रौद्र हूँ
मधुर बाँसुरी कृष्ण की मैं
पर्वत वहन करने वाली
अनामिका हूँ मैं ।
इस पुरुष प्रधान समाज ने
ली परीक्षा हर काल में
मां सीता की अग्नि परीक्षा
ली स्वयं भगवान राम ने,
मैं फिर भी आज खड़ी हूँ
बिना किसी द्वेष के,
मां बहन और संगिनी बन
तुम्हारी ताकत हूँ हर वेश में।
हमकदम हूँ लाचार नहीं
गर्व करो कि मैं नारी हूँ।
बदल रहा यह समाज
बदल रहे आचार विचार
मूरत मेरी पूजी जाती
कोख में मैं मारी जाती
करो उपेक्षित जितना भी
अंतिम श्वास तक साथ रहूँगी बस मैं ही,
पिता की लाठी पति की ताकत
अाैर भाई की शान हूँ मैं
जितना जलूंगी उतना निखरूंगी
मैं हूँ दिव्य मैं नारी हूँ