मैं हार नही मानूँगा
मैं हार नही मानूँगा
मैं हार नहीं मानूँगा, मैं हार नहींं मानूँगा
तकलीफो को बनाउंगा अपनी सनम
जब चल पड़े हैं ये कदम
चाहे हो मुश्किल पहाड़ जितनी ,उसको मैं रौंदूगा
चाहे हो तूफान जैसी,सामने उसके लडूंगा
चाहे हो आग का दरिया, पार उसके जाऊंगा
फिर भी मैं हार नहीं मानूँगा
मंजिल कोसो दूर हैं,और राह है काँटों भरी
काँटों भरी इस राह पे डटके मैं चलूँगा
चलते गिरूँगा, फिर भी उठके दोडुगा
फिर भी मैं हार नहीं मानूंगा
आयेगी चुनोतिया, मिलेगी असफलताएं
असफलताओ से सिखके
सफलताओ के पहाड़ सर करूँगा
फिर भी मैं हार नहीं मानूँगा
मुश्किलो से लड़ने को सिकंदर मैं बनूँगा
जीत कर एक एक पहाड़ मुश्किलों के
मंजिल को हासिल मैं करूँगा
तभी तो मैं " सफल राही " कहलऻऊँगा।
