मैं एक स्त्री हूँ
मैं एक स्त्री हूँ
भावनाओं में सिमटी
भावनाओं से लिपटी
भावनाओं की गीली मिट्टी से
गुँधी हुई हूँ !
भावनाओं में ही
बसती हूँ, बहती हूँ
जीती हूँ, मरती हूँ
बनती हूँ, बिखरती हूँ
भीगती हूँ, सूखती हूँ !
कभी भीगने की आस में
सूखती जाती हूँ
कभी सूखने की आस में
सीलती जाती हूँ !
भावनाओं की नमी ने ही
जोड़ रखा है मुझे
तुमसे, अपने आप से
हरेक शय से !
भावनाएँ न हों
तो तुम कौन और मैं कौन ?
तुम कहते हो
मैं पागल हूँ !
मैं कहती हूँ
मैं एक स्त्री हूँ !!!