मैं एक नारी हूँ
मैं एक नारी हूँ
मैं एक नारी हूँ
बहु हूँ, बेटी हूँ
सबकी राज दुलारी हूँ।
मैं एक माँ हूँ,
जन्म से पोषण मैं ही देती हूँ।
लोग दस बातें कहें,
फिर भी चुप मैं ही रहती हूँ।
विश्व से ब्रह्माण्ड तक,
मेरी ही छाप है।
फिर भी औरत होना,
आज भी अभिशाप है।
मैं अन्नपूर्णा हूँ,
पर निवाला सब से अंत में खाती हूँ,
हर कोई मुझे अपने से ऊपर समझे,
सबके पैरों की में माटी हूँ।
पर अब लगता है, बहुत हुआ
मैं मैं हूँ, कोई और नहीं
मेरी लकीरें कोई और बनाये
ये मुझे बर्दाश्त नहीं।
क्या मना कर दूँ, इस धरती पर,
नया जीवन लाने से,
क्या आदि क्या अंत रहेगा
बस इतने से फ़साने में।
