आज मालिश करते वक़्त
आज मालिश करते वक़्त
आज मालिश करते वक़्त
अपने हाथों को घूर रही थी।
किसी उधेद बुन में थी,
शायद कुछ सोच रही थी।
ज़िंदगी अभी कितनी आसान है,
ज़्यादा चिन्ताएँ हैं नहीं,
थोड़ी मम्मा के, और थोड़ी मेरे पास हैं।
पर मुझे बढ़ना है, लड़ना है,
जीवन कठिन है कितना,
अभी तो समझना है।।
गिरूँगी, संभलूँगी भी,
मम्मा पापा की सिखायी बातें,
कयी बार भूलूँगी भी।
उठूँगी फिर से, सीखूँगी भी,
अपने कदम बढ़ाऊँगी,
दूसरों को रास्ते दिखाऊँगी भी।
जाने कितनी लड़ाइयाँ लड़नी हैं,
खुद से भी, दूसरों से भी,
मैं सिर्फ़ बोलूँगी नहीं,
मेघ हूँ मैं, अभी तो बरसना भी है।
जीवन कितना कठिन है,
अभी तो समझना भी है।
