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Vinod Kumar Rai

Abstract

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Vinod Kumar Rai

Abstract

मैं बूँद हूँ

मैं बूँद हूँ

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मैं बूंद हूँ

समुद्र बनने की ताक़त रखता हूँ।


मैं बीज हूँ

बृक्ष बनने की ताक़त रखता हूँ।


मैं विचार हूँ

राज करने की ताक़त रखता हूँ।


मैं मूल हूँ

सृष्टि करने की शक्ति रखता हूँ।


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