मैं और वो
मैं और वो
मेरे हर सवालों पर सवाल करते हो,
क्यों भूल जाते हो कि मेरे साथ रहते हो।
मैं सुबह शाम इस ज़माने से लड़ता हूँ,
तुम आई रातो को मुझे कमज़ोर कर देते हो।
मैं दिन भर यूं भाग कर क्यों रातों को रूक जाता हूँ,
ये मैं कमजोर पड़ता हूँ या किस्सा तुम्हारा बतलाता हूँ।
ये हारना,ये जीतना,ये थमना,ये थामना,ये कौन है जो करता है,
मुझे यकीन है ये मैं नहीं, फिर क्यों मुझ जैसा कोई लगता है।
क्या मैं इतना कमजोर हूँ जो तुम सहारा दे जाते हो,
या जिस तरह मैं रात नहीं काट पाता, तुम दिन से घबराते हो।
"क्या हम दोनों अलग होकर सुकूँ की कल्पना नहीं कर सकते?"
इस प्रश्न को पूछे अरसा बीत गया, तुम जवाब क्यों नहीं दे सकते?
इन पन्नों के जरिए तुमसे बात करना किसी दर्द से कम नहीं,
कभी तो मेरे सामने बैठो, कहो ये मैं हूँ, हम नहीं।
हर पल एक सवाल मैं तुम तक पहुँचाता हूँ,
तुम आँख बंद कर लेते हो,मैं अधूरा रह जाता हूँ।
नाराज हो क्या मुझसे, और मेरे इन सवालों से,
सोचने पर लगता है तुम नहीं, मैं बच रहा हूँ इन ख़यालो से।
मुझे पता है आज कल और कल परसों की तरह एक जैसा ही रहता है,
कुछ सालों पहले एक पन्ना फटा था,आज वो किताब बन बैठा है।
इतने सारे सवालों का बोझ तुम कैसे सह लेते हो?
मेरे हर पन्ने के अंत में एक नया पन्ना जोड़ देते हो।
मुझे नहीं पता कौन हारा कौन जीता, इस न लड़ी लड़ाई में,
एक कोने में थे सिसकते तुम, दूजे में मैं, तनहाई में।
ख़ैर, दिन मेरा रात तुम्हारी, फिर शामों को सवाल क्यों करते हो,
ये मैं हूँ जो लिख रहा हूँ, या तुम हो जो पन्नों को भरते हो।