मैं आज तुमसे से मुख़ातिब हूं मेरे मुस्तक़बिल
मैं आज तुमसे से मुख़ातिब हूं मेरे मुस्तक़बिल
मैं आज तुमसे मुख़ातिब हूं मेरे मुस्तक़बिल
कुछ सवाल है मेरे, जवाब दोगे क्या?
मेरी कैफियत का हिसाब दोगे क्या?
कि वो जो ख़्वाब मेरे ज़ेहन में हैं,
कभी पूरे होंगे क्या?
मुंतजिर हूं जिसके साथ के लिए
वो हाथ मुझे मिलेंगे क्या?
वो दोस्ती जिसके इंतजार में मैं
हर शाम घूमने निकल जाता था,
मुसलसल मिलते है अब क्या?
वो चैन की नींद जो हमें बचपन में आती थी
तुम्हें अब भी आती है क्या?
हो सके तो कभी ख़्वाब में आकर जवाब देना।
मैं आज तुमसे मुख़ातिब हूं मेरे मुस्तक़बिल।
