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Anoop Kumar

Inspirational

3  

Anoop Kumar

Inspirational

माय फुट!

माय फुट!

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न जाने मेरे पांव का, ये नाप कैसा है
कुछ दिन में ही जूते, काटने लगते हैं
मैं जूते बदलता हूँ, पांव नाप बदल लेते हैं
कभी ढीले होकर जूते, सड़क पर नाचने लगते हैं
लोग बाज़ार जाते हैं, ख़रीदते हैं पोशाकें
लेकिन मेरी निगाहें ढूँढती हैं क्या, मेरे नाप के जूते
सब दुकानें छानता हूँ, पूछता हूँ और जवाब पाता हूँ
कि "भैय्या पांव तुम्हारे इक नाप में जमते नहीं हैं,
जूते जितने भी पहना दूँ मगर कोई टिकते नहीं हैं
ये दुनियादारी है जूता और तुम्हारे पांव इससे भागते हैं
कोशिश करो ढल जाओ इसमें, थोड़ा आगे पीछे कर लो"
नहीं, रहने दो, तुम्हारी दुनिया तुम्हारे जूते, तुम अपने पास रखो
ज़रूरी तो नहीं कि मैं भी इन जूतों में कस जाऊं..
थोड़ा खुल्ला रहना सीख रहा हूँ,
छोड़ो जूते, लाओ हवादार चप्पल लाओ ..
चोट लगती रहेगी मगर हवा में सांस तो होगी,
लाश हो जाऊं जो जूते में, तो क्या जिंदा है क्या मरना..
ज़रूरतों के जूते छोड़कर, मैंने शौक से चप्पल खरीदीं
पर सवाल एक है कि जूते सबके नाप के हैं
या मेरे अकेले की है ये आपबीती?

क्या सबको मिल जाते हैं अपनी पसंद के और नाप के जूते

या फ़िर सब दिखावे में उसी नाप में सिकुड़ते हैं, रगड़ते हैं?


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