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Siddharth Satbhai

Abstract Inspirational

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Siddharth Satbhai

Abstract Inspirational

मानवता तो बाकी हैं !

मानवता तो बाकी हैं !

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मानवता तो बाकी हैं !

हैं खड़े उस राह पर

जहा अंधेरा पनप रहा

सूर्यदेव का तेज देखने

मानव जो अब तड़प रहा


अज्ञातसा लगे शत्रू

दिखाई न दे जो अब

धैर्य कैसे रखे हम

घाव हो रहे हैं जब


डींगे हाँकी थी कभी

हमने महानता की

सूक्ष्मरूप ने बता दिया

क्या सीमा मनुष्यता की


मानो हुआ गर्वहरण

मद तो भारी पड़ना था

मानव मानव लड़ लिए

अब और जीव से भिड़ना था


खूब निभाई यारियां

कई उड़ाए जाम

धूल जम गई आँखोपर

खुद लाए पैग़ाम


शायद ये हम भूल गए

और भी कोई साथी हैं

मानव बन जन्मे सही

पर मानवता तो बाकी हैं !


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