STORYMIRROR

Meena Gulyani

Inspirational

3  

Meena Gulyani

Inspirational

मानुष जन्म अनमोल रे

मानुष जन्म अनमोल रे

1 min
248


रे मन संभल संभल पग धरना

आँखें अपनी खोल रे

ये धरती है उबड़ खाबड़ कहीं

कदम न जाए डोल रे


काम क्रोध मद लोभ के रोड़े

रास्ता तेरा रोकेंगे

ईर्ष्या द्वेष महीधर बैठे

तुझको न बढ़ने देंगे

न डरना तू इनसे मानव

तू अपनी राह टटोल रे


इनके प्रलोभन में मत आना

दूर से ही नाता निभाना

अपने साक्षीभाव में रहकर

दुष्कर्मों को दूर भगाना

समझ लेना जग नश्वर है

मानुष जन्म अनमोल रे!


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Inspirational