मानुष जन्म अनमोल रे
मानुष जन्म अनमोल रे
रे मन संभल संभल पग धरना
आँखें अपनी खोल रे
ये धरती है उबड़ खाबड़ कहीं
कदम न जाए डोल रे
काम क्रोध मद लोभ के रोड़े
रास्ता तेरा रोकेंगे
ईर्ष्या द्वेष महीधर बैठे
तुझको न बढ़ने देंगे
न डरना तू इनसे मानव
तू अपनी राह टटोल रे
इनके प्रलोभन में मत आना
दूर से ही नाता निभाना
अपने साक्षीभाव में रहकर
दुष्कर्मों को दूर भगाना
समझ लेना जग नश्वर है
मानुष जन्म अनमोल रे!
