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Bhupendra Jain

Abstract

4.9  

Bhupendra Jain

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माँ

माँ

2 mins
264


माँ का साया तो सर पर जैसे चंदन है

जगत की सब माताओं को

मेरा शत शत वंदन है।

माँ जीवन की प्रथम गुरु है,

माँ से ही तो ये जग शुरू है।


माँ अन्नपूर्णा है,माँ अन्तर्यामी है,

माँ के उपकार का नहीं कोई सानी है।

माँ तपस्या है,माँ साधना है,

माँ ईश्वर की आराधना है,

माँ शक्ति है,माँ भक्ति है,

माँ मेरी ही तो अभिव्यक्ति है।


माँ धन्वंतरि है, माँ कलाकार है,

माँ ही तो जीवन को देती आकार है।

माँ मान है,सम्मान है,

माँ अध्यात्म का प्रथम सोपान है।

माँ क्षमाशील है,माँ सहनशील है,

माँ से ही तो धर्म का रथ गतिशील है।

माँ गीता है,माँ पुराण है,

माँ से ही तो इस जगत में मुस्कान है।


माँ जगत जननी है,माँ वात्सल्य का झरना है,

माँ की उम्मीदों पर हम सबको खरा उतरना है।

माँ प्रेम है,माँ करुणा है,माँ जगत की धुरी है,

माँ अपने बच्चों की हर इच्छा करती पूरी है।


माँ बरगद की छांव है,

माँ मरुस्थल में मरूद्यान है,

माँ हर संकट के आगे,एक मजबूत चट्टान है।

माँ निःस्वार्थ प्रेम की प्रतिमूर्ति है,

कोई कर नहीं सकता माँ की क्षतिपूर्ति है।


माँ गंगा है, माँ हिमालय है,

माँ के चरणों में ही मेरा शिवालय है।

माँ ज्ञान है,माँ संस्कार है,

मातृ प्रेम दुनिया का सबसे बड़ा पुरस्कार है।


माँ जीवन है, माँ दर्शन है,

माँ से बढ़कर नहीं कोई दूसरा आकर्षण है।

माँ दिए की ज्योति है,माँ गंगा जल सी निर्मल है,

 मातृ प्रेम तो सतत,निश्छल और अविरल है,


माँ मुझमें है,मैं माँ में हूँ,

मैं माँ में हूँ, माँ मुझमें है,

क्या खोज रहा है बाह्य जगत में,

वह शिव तो स्वयं तुझमें है।


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