STORYMIRROR

चेतन गोयल

Abstract

4  

चेतन गोयल

Abstract

माँ

माँ

1 min
23.7K

मेरा घर एक मन्दिर है, और मंदिर का तू भगवान है

तेरे बिना, हे माँ ! मेरी, मेरा घर तो वीरान है।


घर में आकर सबसे पहले , आंखे तुझको ही ढूंढती है

एक तू ही तो है दुनिया में,जो मेरे सपनें बुनती है


तुझसे ही तो शुरु हुई थी, मेरी ये दुनिया सारी

मेरे लिये तू सबसे पहले, बाद में ये दुनियादारी


हम दोनों के बीच ये रिश्ता, ये रिश्ता बड़ा सयाना है

दुनिया के हर रिश्तों से ये, नव महीने पुराना है


जब भी लगती है चोट मुझे, या थोड़ा भी जी मचलता है

आता नहीं कोई याद मुझे,बस"माँ' ही मुंह से निकलता है


एक अक्षर के इस नाम में, पूरी दुनिया समायी है

राम हो या कृष्ण हो, वो भी तेरी परछाई है


तू गंगा सी निर्मल है माँ, तू सीता-सी पवित्र है

तू माँ ही नही है केवल मेरी, तू एक अच्छा सा मित्र है


तेरे इन उपकारों का तो, मैं कर्ज चुका न पाऊंगा

पर एक वचन में दे रहा हूँ, कभी छोड़ तुझे ना जाऊंगा।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract