यू ही नहीं
यू ही नहीं
सुनने वाला चाहिये,
इन हवाओं में भी साजिशें बहती है
जो कुछ भी घटती है घटना,
कुछ ना कुछ तो कहती है
यूं ही नहीं आती हिचकी,
किसी को याद हमारी चुभोती है
और युं ही नहीं टुटते तारे,
किसी की मन्नत पुरी करनी होती है।
यूँ ही नहीं करते पंछी शोर ,
किसी को जगाना भी होता है
इन पलकों को भी तो प्यास लगती है,
शायद इसलिये रोना होता है
दिखाने ईश्वर की कुटिया
कस्तुरी मृग में रहती है
जो कुछ भी घटती है घटना,
कुछ ना कुछ तो कहती है।
यूं ही नहीं होती है बरसात,
क्योंकि समुंदर तो सारे खारे है
यूँ ही न हीं उगते चांद और सूरज
यहाँ दिया बुझाने वाले बहुत सारे है
यू ही नहीं बुझा होगा चिराग तुम्हारे घर का
जरुर तुम्हारे घर बहुत सारी रुई होगी
और कैसे मान लूं कि युं ही फट गया होगा दुध
जरुर तुम्हारी पनीर खाने की इच्छा हुई होगी
बदलना होता है समाज,
तभी तो स्याही बहती है
जो कुछ भी घटती है घटना,
कुछ ना कुछ तो कहती है।
