माँ, सब त्यौहार तुम्ही से हैं
माँ, सब त्यौहार तुम्ही से हैं
जीवन की अंधियारी रातों में ,
पूरनमासी का चंदा बन छा जाती हो ,
जीवन के रेतीले मरुस्थल में ,
अमृत की धार बन जाती हो ,
तुम मौन भाव से बजने वाली वीणा हो ,
जो मधुरतम संगीत बजाती है ,
जब -जब भी हम घायल होते ,
तुम चरक ऋषि बन सारे घाव मिटाती हो ,
तुम घर -घर की हर घर की रौनक हो ,
हमारी दोहा -चौपाई सब तुम्ही से है ,
पच्चीस ,पचास ,पचहत्तर कितने की भी हो माँ ,
हम बच्चों के सारे त्यौहार उसी से हैं ।