माँ मैं अब बड़ी हो गयी…
माँ मैं अब बड़ी हो गयी…
वह छोटे छोटे कदम लेने वाली,
न जाने कब दौड़ पड़ी,
तेरे आँचल मे खेलने वाली,
ना जाने कब दुनिया से टकरा गयी !!!
जब भूख लगती थी तब घर सर पे ले लेती थी,
छोटी छोटी बातों पे वो कैसे रूठा करती थी,
चोट जो छोटी सी लागतो थी तो,
रूहानी सी हो जाति थी !!!
माँ बाबा के लाड़ से, फ़िर से चहक जाती थी,
घर खिल उठा था उसकी आवाज से,
अपनी चंचलता की खुशबू से,
पूरा घर महकाती थी !!!
अब सबको खिला ने के बाद खाती है,
रूठने पे भी खुद ही को मनाती है,
बडी चोट भी, यह तो होता है कह के सह जाती है,
रूहानी अभी होती है, फिर खुद ही को समझाती है !!!
माँ बाबा के लाड़ को पल पल वो तरस जाती है,
घर की याद ऊस को हर पल आती है,
चंचल थी अब समझदार हो गयी,
अब लगता है माँ मैं बड़ी हो गयी ।।