माँ ही प्रथम गुरु है
माँ ही प्रथम गुरु है
माँ ही प्रथम गुरु है ,
जिसने चलना-बोलना,लिख्नना–पढ़ना सिखाया,
अच्छे बुरे का ज्ञान कराया,
इस लिए माँ सदैव पूजनीय है।
माता पिता गुरु देवता,
प्रथम स्थान है माँ का,
कब कहा, कैसे बोलना है,
क्या बोलना है, कितना बोलना है ,
बिना कहे ही सिखा गयी माँ।
कैसे माँ का धन्यवाद करूँ,
जितना भी अभिनन्दन करूँ कम है,
अब माँ कहाँ- वो मेरे सपनो में है ,
मेरी सोच में है, मेरे हर पग पग में है माँ,
राह दिखाती माँ अब कहाँ ?
माँ तुझे ढूँढू, अपनी यादो मैं,
अहसासों मैं, अपने विचारों में ,
पर अब माँ कहाँ, माँ कहाँ है,
पर अब ,खुद को पाती हूँ माँ की परछाई सी ,
मुझे अच्छा लगता है माँ जैसा दिखना।
माँ की कही बातों को गुनना,
अपनी जीवनचर्या में उतारना,
माँ कहती थीं, “पहले थोड़ा कष्ट उठाना,
फिर सब दिन आनंद मनाना”,
उन्हीं के पद चिन्हों पर चलकर यह मुकाम पाया है|
अतः कहूँगी माता पिता का कहा सदा मानना,
अब भी जब कभी घिर जाती हूँ ,
किसी मुश्किल या परेशानी मैं,
माँ कैसे सुलझाती इसे, उनके तरीके को सोच कर ,
अब भी मुश्किल अपनी सुलझा लेती हूँ मैं,
माँ का कहना “हाथ पैरो ने सुख पाया
तो तन कष्ट पायेगा”,
उनकी बातों को मानकर विनम्र निवेदन सबसे ,
शरीर को जितना साधोगे उतना मजबूत होगा,
जैसे कहा है”स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है “|
कितनी खुश किस्मत हूँ मैं,
क्योंकि, याद है माँ की कही हर बात ,
अब भी सहेजे हूँ ,माँ की हर सीख को,
जो जाने-अनजाने ,,समयानुसार चलने की राह दिखाती है
माँ बहुत याद आती हो तुम।
अब भी सोच कर आँखे नम हो जाती है,
मुझे नाजो से पालने के लिए धन्यवाद,,
अपितु माता पिता का क़र्ज़ कोई नहीं उतर सकता,
मेरी यादो मैं हमेशा बने रहना।
अब भी ये महसूस होता है की तुम यही पास हो मेरे,
फिर मैं आवाज़ दूंगी तुम्हे,
और फिर से आ जाओगी तुम,
मेरी माँ ,मेरी प्यारी माँ ,
तुझे दिल के गहराईयों से सलाम।