लोकतंत्र यहाँ फिर जीतेगा
लोकतंत्र यहाँ फिर जीतेगा
लोकतंत्र के कल दो रूप दिखेंगे।
राजतंत्र के कल दो भेद खुलेंगे।।
हाँ जीता वो जश्न मनाएगा।
हारा क्या चिंतन पर जाएगा??
जो कर्म निज कर सका अधिक।
मर्म जन का धार सका अधिक।।
जिसने खुद को बेहतर बतलाया।
जिसने राष्ट्र धर्म को कर दिख लाया।।
हाँ जो बेहतर होगा औरों से।
हाँ जो भविष्य सँवारे जोरों से।।
उसका ही होगा राजतिलक।
पाएगा वो ही भाल तिलक।।
कुछ जो बेहतर न हो पाएँगे।
या कहो कि हार जो जाएँगे।।
उनमें भी होंगे दो प्रकार।
हाँ दिखेंगे उनके दो आकार।।
इक आत्ममंथन को जाएँगे।
इक हाहाकार यहाँ मचाएँगे।।
जो जीतेंगे उनमें भी दो होंगे।
भाल तिलक वाले भी दो होंगे।।
इक जो दिल जीतने निकलेंगे।
इक जीत का जश्न मनाएँगे।।
कल लोकतंत्र भी होगा अलग अलग।
या करेंगे व्याख्या निज मान जनक।।
इक लोकतंत्र को दण्डवत मानेगा।
इक लोकतंत्र साज़िश सा जानेगा।।
हाँ कोई ई वी एम को कोसेगा।
और कोई दोष बूथ को दे देगा।।
बातें कल होगी अलग - अलग।
रातें कल होगी अलग - अलग।।
इक पूर्णिमा सा खिल जाएगा।
इक अमावस से मिल जाएगा।।
पर सुनो दोनों और के सब मनुज।
तुम हार जीत में बनना न दनुज।।
कल जो भी परिणाम आएगा।
जो जनता का जनाधार आएगा।।
सबसे बढ़कर वो ही होगा सर्वस्व।
जीतेगा वो जन का जो है वर्चस्व।।
कल फिर राजतंत्र यहाँ पर हारेगा।
और लोकतंत्र यहाँ फिर जीतेगा।।