STORYMIRROR

अरविन्द दाँगी 'विकल'

Others

3  

अरविन्द दाँगी 'विकल'

Others

फिर रिश्तों को ओढ़े

फिर रिश्तों को ओढ़े

1 min
254


हमने कितने जोड़े,  रिश्ते सारे तोड़े...।

पथ दिल तक ले जाकर, साथ कोई न छोड़े...।।


बचपन से ले अब तक, देखे सारे नाते।

हर पल जानी हमने, नित नव होती बातें।।

जब वक्त बुरा आया, सबने मुँह थे मोड़े।

पथ दिल तक ले जाकर, साथ कोई न छोड़े...।।


अब दिल में है ईर्ष्या, और मन यहाँ दूषित।

जन-जन का मेल नहीं, तन क्यों हुआ संदूषित।।

धन की दौड़ भाग में, हमने सिर तक फोड़े।

पथ दिल तक ले जाकर, साथ कोई न छोड़े...।।


भूल पुरातन को हम, नवता को पूज रहे।

जिसने दिया था जन्म, उनको भी भूल रहे।।

मृत अनुबंधों की ओर, अंत समय क्यों दौड़े।

पथ दिल तक ले जाकर, साथ कोई न छोड़े...।।


आओ अब यह प्रण ले, फिर रिश्तों को ओढे।

पथ दिल तक ले जाकर, साथ कोई न छोड़े...।।


   


Rate this content
Log in