लेखक का सपना
लेखक का सपना
लेखक की आंखों में तैरते हैं सपने हजार
कलम से करता है वह वीराने को गुलजार
वीर रस का झरना हो या हास्य के फव्वारे
व्यंग्य की तेज कटार से भय खाते हैं सारे
रहस्य रोमांच की दुनिया में वह ले जाता है
श्रंगार की फुहारों से सबको भिगो जाता है
सपने ही उसकी दुनिया है सपने ही दौलत
सपनों को कागज पे उतारने में है महारथ
प्रेमचंद की तरह उसकी कहानियां अमर हों
दिनकर सी कविताओं का अजस्र निर्झर हो
गालिब सी गजल हो जो सीधे दिल में उतरे
रसखान से सवैयों से भक्ति के रंग बिखरे
कबीर रहीम के दोहों सी खालिस सच्चाई हो
मीरा के निर्मल प्रेम सी दिलों में अच्छाई हो
कालिदास सा अनुपम शिल्प जो उसे मिल जाए
तो वह भी अपना नाम जहां में अमर कर जाए