क्या करें, क्या ना करें
क्या करें, क्या ना करें
ना प्रेस वाला भैया, ना काम वाली बाई,
क्या क्या बन जाएं हम, कोई तो बता दो भाई।
कभी कुकर की सीटी है बजती, कभी सिंक में प्लेटें है खनकती,
लॉन्ड्री में कपड़ों का ढेर, समय का ये कैसा है फेर।
घर है बिखरा पड़ा, हर कोई है उजड़ा उजड़ा,
क्या करें क्या ना करें, इसी सोच में है हर शख्स पड़ा।
खाने में टेस्ट नहीं, करना कुछ वेस्ट नहीं,
रेसटोरेंट्स भी क्लोज्ड सारे, जाएं कहां हम बेचारे।
चलो कोई नहीं, कुछ दिन की है ये बात,
कुछ तुम करो, कुछ हम करें, यू हीं कट जाएंगे ये दिन रात।
