क्या हम वाकई में आजाद हो गए हैं ?? Prompt 15
क्या हम वाकई में आजाद हो गए हैं ?? Prompt 15
स्वतन्त्रता दिवस के पावन अवसर पर मन बड़ा पुलकित है,
पर एक बुनियादी सवाल से वह उतना ही विचलित है,
क्या हम वाकई में आजाद हो गए हैं ?
अंग्रेजों को तो हमने देश से निकाल दिया,
पर हमारे अपनों ने ही हमको बेहाल किया,
गरीब के सर पर ना छत है, ना हाथों को काम,
दो जून की रोटी को तरसता है वो सुबह-शाम,
"गरीबी हटाओ" के नारों से ही नेता उनको मोह गए हैं,
क्या हम वाकई में आजाद हो गए हैं ?
गाँव में आज भी बुनियादी साधनों का अभाव है,
अच्छे स्कूलों और अस्पतालों का सिर्फ कागज़ी प्रस्ताव है,
गाँवों के खेत भी अब बिल्डिंगों में बदल रहे हैं,
अनाज और सब्जियों के जगह कॉन्क्रीट उगल रहे हैं,
अनगिनत किसान खुदखुशी कर मौत के नींद सो गए हैं,
क्या हम वाकई में आजाद हो गए हैं ?
जिस देश में स्त्री को देवी का सम्मान दिया जाता है,
उनकी कोख में ही ह्त्या का घिनौना काम किया जाता है,
होता है उनके साथ आये दिन कितना ही दुराचार,
हमारे लिए बन गया है जो महज एक समाचार,
पश्चिमी सभ्यता के अंधानुकरण में हमारे संस्कार कहीं खो गए हैं,
क्या हम वाकई में आजाद हो गए हैं ?
भ्रष्टाचार हमारे जीवन का बन गया है अभिन्न अंग,
हर आम आदमी को कर रखा है इसने बिलकुल तंग,
बिना रिश्वत दिए कहीं कोई काम नहीं होता है,
रिश्वत न देने वाला सिर्फ जीवन भर रोता है,
"पेटी" और "खोखा" पैसे के नए मानक हो गए हैं,
क्या हम वाकई में आजाद हो गए हैं ?
