मेरी हिंदी में पढ़ाई !!! Prompt 20
मेरी हिंदी में पढ़ाई !!! Prompt 20
एक दिन बेटे ने मांगी मुझसे एक सफ़ाई,
कि पापा किस भाषा में की है आपने पढ़ाई ?
मैंने भी सोचा कि क्यों कर रहा है आज ये ऐसा सवाल ?
जिससे हो सकता है मेरे ही मन में अजब सा बवाल !
फिर भी मैंने उसकी इस जिज्ञासा की प्रवृत्ति रखी जिंदा,
और कहा कि बचपन में मेरी पढ़ाई की भाषा थी हिंदी !
जवाब सुन कर उसने पूछा अगला सवाल,
हिंदी ने क्या दिया आपको इतने साल ?
छोटे से बच्चे का सवाल था तो थोड़ा कठोर,
पर जवाब के लिए मुझको दिमाग पर नहीं डालना पड़ा ज्यादा जोर l
बेटा तुम्हारा ये सवाल मेरे दिमाग में भी कई बार आया,
पर इसका जवाब मेरे दिमाग को मेरे दिल ने ही बतलाया l
बेटा हिंदी में हमने छोटे छोटे अक्षरों में ही पढ़ लिए बड़े बड़े पाठ,
"माँ" के अर्थ को समझ लिया जब "आ" की मात्रा आ गयी "म" के साथ
माँ के सम्मान में चार चाँद लगा दिया "चन्द्र बिंदी" ने,
इसीलिए तो महान भाषा का सम्मान पाया हिंदी ने l
हमको "च चा चि ची" और "म मा मि मी" में चाची और मामी की हो गयी पहचान,
और छोटी सी उम्र में भी हम बड़े बड़े रिश्तों से भी नहीं रहे अनजान l
"दो एकम दो" और "दो दूनी चार" के जो संगीतमय पहाड़े पढ़े हैं,
वो आज भी हमारी याददाश्त में बिलकुल ताजा खड़े हैं l
बीजगणित और भूमिति में सवालों को हल करने में मिलता था जो आनंद,
"अलजेब्रा" और "ज्योमेट्री" में कहीं पड़ जाता है वो मंद l
बचपन से ही रटे थे दोहे कबीर, सूरदास और रहीम के,
किस्से राम के कृष्ण के, अर्जुन और भीम के l
बेटा हिंदी में पढ़कर हमको जो मिले अच्छे संस्कार,
उसी से मिला हमारे व्यक्तित्व को पूरा आकार l
आज भी जब अपने अध्यापकों और अध्यापिकाओं से मिलने का मौका मिलता है,
अनायास ही मुँह से "सरजी" या "टीचरजी" ही निकलता है l
दोनों हाथ अपने आप जुड़कर करते हैं नमस्ते ,
फिर उनके पाँव छू लेते हैं भले ही हों बीच रस्ते l
बेटे ने पूछा पापा जब हिंदी ने आपको इतना आगे है बढ़ाया.
तो मुझे क्यों आपने हिंदी के बजाय इंग्लिश में पढ़ाया ?
बेटा हिंदी की ये कहानी थोड़ी अधूरी है,
क्योंकि आज सफलता की हिंदी से बढ़ गयी दूरी है l
हमको कॉलेज में किताबों के ज्यादा डिक्शनरी का सहारा लेना पड़ा,
क्योंकि अचानक सारे ही सवालों का जवाब अंग्रेजी में देना पड़ा l
प्रोफेसर क्या पढ़ाता था ये कई बार समझ नहीं आता था,
क्योंकि वो घनमूल को " क्यूबरूट " और प्रतिरोध को " रेसिस्टेंस" बताता था l
अपने आप को अक्सर हम प्रतियोगिता में पिछड़ा पाते थे,
क्योंकि अंग्रेजी शब्दों के अभाव में कई बार लड़खड़ा जाते थे l
कॉलेज में कई बार अछूतों सा व्यवहार किया जाता था,
" वर्नाकुलरr" कह के क्लास में अलग बिठा दिया जाता था l
जो मैंने सहा है वो तुम पर ना बीते यही मेरी चाह है,
क्योंकि इस अग्रेज़ीनुमा माहौल में हिंदी की बहुत ही कठिन राह है l
लेकिन हमने हिंदी के माहौल से तुमको कहाँ रखा है दूर ?
इसीलिए तो " ग्रपेस" से पहले सिखाया शब्द "अंगूर" l
भले ही अंग्रेजी में तुम सबको अंकल मानते हो,
पर चाचा और मामा का अंतर अभी से जानते हो l
बड़े होकर तुम भी इस परम्परा को निभाना,
और अपने बच्चे को "मम्मी" से पहले "माँ" सिखाना l
बेटा आज भी मैं हिंदी में ही देखता हूँ अपने सारे सपने,
इसीलिए भले ही सच न हों फिर भी वो लगते हैं बहुत ही अपने ll